શુક્રવાર, 20 માર્ચ, 2020

पता नहीं - हिंदी रचना-४



 हिंदी रचना-४ 

पता नहीं

कब तक सनमकी राह देखूं पता नहीं
कब तक सनमकी चारखूँ पता नहीं


काले घने गेसुओंकी छावमे  चेहरा
छिपानेकी घड़ी कब आयेगी पता नहीं

इन्तेज़ारकी क्या कोई सीमा होती है
क्या तुम सीमासे परे हो पता नहीं

घड़ियाँ बीत रही है इस आसमें की
कब मिलन होगा सनमसे पता नहीं


-भजमन

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